आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल - 9
सुबह के 10 बज रहे थे उसके बावजूद जंगल में घनघोर अंधेरा था मानो रात के 12:00 बज रहे हो। आकांक्षा उस अंधेरे में भी धीरे धीरे चलते हुए रास्ता ढूंढने की कोशिश कर रही थी। रीवांश सच जानते हुए भी उसके साथ साथ चल रहा था कि वह कभी जंगल के छोड़ तक नहीं पहुंच पाएगी।
"अगर इस तरह रास्ता ढूंढा तो आप इस जन्म में तो क्या अगले जन्म में भी जंगल के बाहर नहीं पहुंच पाएगी। कहीं आपकी दिव्य शक्तियां आपके लिए खतरा ना बन जाए। हमें एक पल भी आपको अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना है।" रीवांश चलते हुए सोच रहा था।
वह दोनों चुपचाप आगे बढ़ रहे थे। काफी देर चलने के बाद आकांक्षा ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा,"तुम्हारे पास घड़ी है क्या? टाइम क्या हुआ होगा?"
" नहीं..... हमारे पास कुछ नहीं है।" रीवांश ने धीमे स्वर मे जवाब दिया।
"पता नहीं मैं नींद में चलते चलते यहां पर कैसे आ गई? मुझे तो नींद में चलने की बीमारी भी नहीं है। मेरा जरूरी सामान घर पर रह गया। अगर जानवी यहां होती तो वह पक्का बोलती, तू कौन सा जंगल में पिकनिक करने आई है, जो सारा सामान साथ लेकर आएगी।" आकांक्षा चलते हुए खुद से बातें कर रही थी।
रीवांश बिना कुछ बोले आकांक्षा की बातों को सुने जा रहे थे। भले ही आकांक्षा को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन रीवांश एक पिशाच होने की वजह से अंधेरे में भी सब कुछ साफ-साफ देख सकता था। आकांक्षा के आसपास रोशनी का घेरा रीवांश के अलावा खुद उसे भी नहीं दिखाई दे रहा था।
"एक तो यहां पर इतना अंधेरा है.... ऊपर से मैं अपना चश्मा भी घर भूल आई। चलो कोई नही अगर चश्मा भूल आई तो.... यार कम से कम मोबाइल तो अपने साथ लाना चाहिए था ना। और तुम क्या इतनी देर से चुपचाप चल रहे हो.... कुछ बोलोगे नहीं क्या ? तुम कैसे फंसे यहां पर?" आकांक्षा ने पूछा।
रीवांश ने सकुचाते हुए जवाब दिया, "आप कब से बोले जा रही है.... आपने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया, तो मैं कैसे बोलूंगा।"
"मैं तुम्हें बोलने का मौका नहीं दे रही? थैंक गॉड जानवी यहां पर नहीं है, फिर तुम्हें पता चलता कि बोलने का मौका ना देना क्या होता है। खैर छोड़ो, यह बताओ तुम यहां जंगल में कब से हो?"
रीवांश से अपने बारे में कुछ नहीं बताना चाहता था, इसलिए उस ने बातों का रुख बदलने की कोशिश की।
"आप कब से हम से सवाल पूछे जा रही हैं। आप अपने बारे में कुछ बताएगी कि आप इस जंगल में क्या कर रही हो, वो भी अकेले?"
"मै वो.....मै.. सच कहती थी जानवी... वो किताबें ही मनहूस थी। पता नहीं किस घड़ी में हमने वो किताबें पढ़ी। रात को हम उस राजकुमार रीवांश के बारे में पढ़ कर सोये थे, और आंख खुली तो खुद को इस जंगल में पाया। मुझे नहीं पता कि मैं यहां पर कैसे आई।"
आकांक्षा के मुंह से अपना नाम सुनकर रीवांश चौक गया।
"और आप कैसे जानती हो राजकुमार रीवांश के बारे में?"
रीवांश की बात सुनकर आकांक्षा ने सोचा, "पता नहीं ये कौन है? मैं इसे अपनी शक्तियों के बारे में बिल्कुल नहीं बता सकती। कहीं इसने मेरी शक्तियों का गलत फायदा उठाना चाहा तो? कुछ भी करके मुझे बातों को घुमाना होगा।"
आकांक्षा उसकी बातों का जवाब देने के बजाय चुपचाप चल रही थी। जबकि उसके मुंह से अपना नाम सुनकर रीवांश की बेचैनी बढ़ रही थी।
"आपने बताया नहीं कि आप रीवांश के बारे में कैसे जानती हैं?"
"आप तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे वो मेरा कोई रिश्तेदार लगता हो. .. या तुम उसके कोई रिश्तेदार हो। मैं तो एक स्टूडेंट हूं। मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। कल जब लाइब्रेरी गई थी, वहाँ हिस्ट्री से रिलेटेड कुछ किताबें दिखाई थी तो मैं उन्हे घर ले आई। बस वही पर मैंने राजकुमार रीवांश का नाम पड़ा था। लेकिन तुम उस में इतना इंटरेस्ट क्यों ले रहे हो?"
"क्योंकि हमारा नाम भी रीवांश है ना, अक्सर एक नाम वालों से ना चाहते हुए भी कनेक्टेड फील होता है। आपने बताया नही कि आपने राजकुमार रीवांश के बारे में क्या पढ़ा?"
"ये तो सही कहा तुमने। वैसे ज्यादा कुछ तो उनके बारे में पढ़ने को नहीं मिला। लेकिन बिलासपुर से जुड़ी कुछ किवदंतियो के बारे में लिखा था, तो बस उसी में उनका जिक्र था।"
"और क्या लिखा था उस पुस्तक मे? " डिवाइस अपने बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हो रहा था। पिशाच का शापित जीवन मिलने के बाद उसे नहीं पता कि बिलासपुर में क्या हुआ था। आप इतने सालों में पहली बार उसमें किसी के मुंह से अपना नाम सुना था।
"मै तुम्हें बता तो दूँगी, पर तुम डर तो नही जाओगे ना?" आकांक्षा ने हिचकीचाते हुए कहा। बोलते हुए उसका चेहरा किसी बच्चे की तरह मासूम लग रहा था, जिसे देखकर रीवांश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
" ठीक है, हम कोशिश करेंगे कि हम ना डरे। बाकी आप तो है ही हमारे साथ.... चलिए बताइए।"
"हाँ तो सुनो.. बिलासपुर का नाम सुना है तुमने? हिमाचल से ही हो ना तुम?"
"हाँ सुना है। हम भी हिमाचल से ही है।"
आकांक्षा– "रीवांश बिलासपुर के ही राजकुमार थे। पता है उस जमाने मे भी वो विदेश मे पढ़ने गए थे... हाउ कूल ना?"
"हाँ...! क्या विदेश मे पढ़ना या वहाँ की सभ्यता अपनाना कूल होता है?" रीवांश ने गंभीर होकर पूछा।
"नही.... लेकिन तुम भी सोचो... हम इतने मॉडर्न है। इस टाइम मे है, लेकिन फिर भी दद्दू मुझे अकेले घर से बाहर निकलने से पहले सौ इंस्ट्रक्शन देते हैं और राजकुमार रीवांश इतने पुराने जमाने में होकर भी बाहर पढ़ने गए।"
रीवांश– "तो आपको घर से बाहर निकालने की इजाजत नहीं है। कहीं आप घर से भागकर यहाँ जंगल मे तो नही आ गई?"
उसकी बात सुनकर आकांक्षा चलते हुए रुक गई। वो रीवांश की तरफ मुड़ी और गुस्से में बोली, "तुम क्या पागल वागल हो क्या? अभी तो बताया कि नींद में चलते हुए गलती से आ गई.... हां तो मुझे छोड़ों.... रीवांश के बारे में बात करते हैं।"
"जी..!" रीवांश ने उसे देखकर सोचा, "आज पहली बार किसी की बातें सुनने का मन कर रहा है। कितनी प्यारी है ये..! बिल्कुल हमारे ख्वाबों की शहज़ादी की तरह..! हमारी शहज़ादी।"
"पता है उस बुक में क्या लिखा था?" आकांक्षा चलना छोड़कर वही रुककर बात करने लगी, "राजकुमार रीवांश जब अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस अपनी रियासत मे लौट रहे थे, तो उसी रात उन्होेंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक शैतानी तंत्र प्रक्रिया की थी। कहते हैं उस रात शैतान स्वयं जागृत हुआ था और उन लोगो को असीम शक्तियां दी थी। लेकिन इस बात पर सभी लोग अभी भी एक मत नहीं हैं कि राजकुमार रीवांश ने खुद वह शैतानी प्रक्रिया की थी या उनके दोस्तों ने उनके साथ में छलावा किया था। हो सकता है, उन लोगो ने अपनी बुरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए उन्हें एक मोहरा बनाया था। कुछ कह नही सकते।"
रीवांश उसकी बातें सुनकर दुखी हो गया।
"और आपको क्या लगता है? क्या राजकुमार ने सच में शक्तियों के लिए किसी शैतान को जागृत किया था?"
"पता नहीं यार ... लेकिन जो इंसान विदेश में पढ़ा लिखा हो, वो इन सब अंधविश्वासों मे क्यों मानेगा। पहले से जिसके पास में इतनी बड़ी रियासत हो, जिसका वो एकलौता वारिस था। वह क्यों किसी शैतान को जागृत करके शक्तियां प्राप्त करेगा? बाकी इन बुक्स का क्या है, इनमें तो कई बार आधी बकवास लिखी होती है।" आकांक्षा ने अपनी राय दी।
उसकी बातों ने रीवांश को अंदर तक छलनी कर दिया।
उसने आकांक्षा की बातों का कोई जवाब नही दिया और चुपचाप चलने लगा। रीवांश के मन मे काफी बाते चल रही थी।
"तो ये इतिहास बनाया, लोगो ने हमारा। हमारी क्या गलती थी उस रात, जो उसकी सज़ा हम आज तक भुगत रहे है। आपको भी जब सच का पता चलेगा तो.. तो आप भी हमसे नफरत करने लगेगी।"
"तुम बार बार किसके ख्यालों मे खो जाते हो? पता नहीं कब सुबह होगी और कब हम रास्ता ढूंढ पाएंगे।" आकांक्षा ने फिर बातचीत शुरू करने की कोशिश की, "तुम्हे क्या लगता है, सुबह कब तक होगी?"
उस का सवाल सुनकर रीवांश ने सोचा, "कैसे बताएं अब आपको... इस जंगल में कभी सुबह नहीं होती। यहां पर ना तो सूरज की.... और ना ही उम्मीद की कोई किरण नजर आती है। इस जंगल में सिवाय अंधेरे के और कुछ नहीं है.... या फिर एक ऐसी कैद, जो अनंत काल तक रहती है। हमें डर है कि कहीं आप भी इसी चक्कर में कैद होकर ना रह जाए।"
रीवांश के मन में आकांक्षा के प्रति फिक्र और डर के भाव एक साथ आए।
★★★★
राजवीर जी ने जानवी के साथ उन सभी जगहों पर गए, जहां पर आकांक्षा जा सकती थी। लेकिन उन्हें हर तरफ निराशा ही हाथ लगी। सुबह से दोपहर का वक्त हो गया था, उसके बावजूद आकांक्षा का कुछ पता नहीं चला। आखिर में राजवीर जी को पुलिस स्टेशन आना ही पड़ा।
वो दोनो पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो इंस्पेक्टर दुबे वही मौजूद थे।
जानवी को देखते ही इंस्पेक्टर दुबे उसके पास जाकर बोले, "अरे जानवी.... तू फिर आ गई यहां पर। दीदी और जीजा जी यहां पर नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि तू आए दिन पुलिस स्टेशन में आ जाए.....और आज तेरी दोस्त नहीं आई तेरे साथ?"
उनकी बात सुनकर राजवीर जी ने हैरानी से पूछा, "आप जानते हो जानवी को ... और कौन से दोस्त की बात कर रहे हो?"
"अरे जानवी के साथ रहती हैं ना वो. ... वो है ना, जो चश्मा लगा कर रखती हैं। भूरे बालों वाली गोरी सी लड़की.... पता नहीं इन दोनों के दिमाग में पूरे दिन क्या खुराफात चलती रहती है। ये आजकल के बच्चे भी ना..!" इंस्पेक्टर दुबे के कहते ही राजवीर जी ने जानवी को गुस्से मे घूरकर देखा।
"जानवी यह मैं क्या सुन रहा हूं .... तू और अक्षु पहले भी यहां पर आई थी। लेकिन बेटा पुलिस स्टेशन में किसलिए?"
इंस्पेक्टर दुबे– " अरे मत पूछिए सर, यहां तीन-चार दिन पहले एक लड़के का मर्डर हो गया था। जंगल के छोर पर उसकी लाश मिली थी और उसकी लाश के पास कुछ किताबें। दोनों लड़कियों ने जबरदस्ती वो किताबे मुझसे पढ़ने के लिए ली थी। पता नहीं आजकल के बच्चे क्यों भूत पिशाच के बारे में स्टडी करते रहते हैं?"
"लगता है, दुबे अंकल सारी पोल आज ही खोल देंगे। यह अक्षु की बच्ची, पता नहीं खुद तो कहां चली गई और मुझे यहां अकेली छोड़ गई।" जानवी बड़बड़ाई।
"इंस्पेक्टर साहब, जानवी के साथ जो लड़की आती है, वो मेरी पोती है, आकांक्षा ठाकुर..! पता नहीं सुबह से कहां चली गई। मिल ही नहीं रही। उसी की कंप्लेंन लिखवाने आए थे।" राजवीर जी भावुक होकर बोले।
"बुरा मत मानिएगा सर, लेकिन ये आजकल के बच्चे हम बड़ो की सुनते कहां हैं? ये लोग भूत पिशाच वाली किताबें पढ़ते है, वीडियोज देखते है, फिर उन्हे खोजने निकल जाते है। देखिए, हम आपकी रिपोर्ट 24 घंटे से पहले नहीं लिख सकते, लेकिन फिर भी मैं जानवी को जानता हूं, तो आपके साथ एक कॉन्स्टेबल को भेज देता हूं। वह उसकी फोटो लेकर इधर-उधर पूछ लेगा।" इंस्पेक्टर ने कहा।
"जी सर, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। लेकिन अब उसकी जरूरत नहीं है। अगर आपकी मदद की जरूरत हुई, तो मै जानवी से आपको कॉल करने को बोल दूंगा।" कहकर राजवीर जी जानवी के साथ बाहर आ गए। वह जानवी की तरफ गुस्से में देख रहे थे।
"दद्दू अब आप ऐसे लूक्स तो मत दीजिए... मुझे डर लग रहा है।" जानवी ने मुंह बनाकर बोला।
"जानवी, तू सच सच बताएगी कि इन दो-तीन दिनों में चल क्या रहा है? कभी तुम दोनो को आधी रात को लाइब्रेरी जाना होता है, तो कभी तुम दोनों पुलिस स्टेशन चली जाती हो।"
"दद्दू आप विश्वास नहीं करेंगे... लेकिन हमारी अक्षु के पास कुछ मैजिकल पावर्स है।" जानवी ने इधर-उधर देखकर धीमी आवाज में कहा।
राजवीर जी जानवी के मुंह से मैजिकल पावर्स की बात सुनकर चौक गये। उन्होंने बात को ज्यादा बढ़ाना जरूरी नहीं समझा।
"क्या बोल रही हो तुम जानवी? हम घर पर नहीं हैं। तुम्हारी हरकतें तो पागलों वाली है ही, अब बातें भी पागलों जैसी करने लगी।"
"ठीक है दद्दू.... हम घर पर चल कर बात करते हैं। अब आपने मुझे पागल बोल दिया है, तो यह पागल आज आपको सारा सच बता देगी। लेकिन प्रॉमिस कीजिए कि जब अक्षु मुझे मारेगी, तब आप मुझे बचाएंगे उससे?" राजवीर जी का पागल बोलना जानवी को पसंद नहीं आया।
"घर चलकर बात करते हैं।" कहकर राजवीर जी गाड़ी की तरफ बढ़ें।
कुछ देर बाद राजवीर जी और जानवी घर वापिस पहुंचे। वो जानवी से थोड़ा गुस्सा थे।
"अब सब कुछ सच-सच बताओगी? मुझे कोई झूठ नहीं सुनना जानवी।"
"एक गिलास पानी मिलेगा?" जानवी ने मासूम शक्ल बनाकर कहा।
"नहीं मिलेगा... कहीं मैं पानी लेने गया और तुमने कोई नया बहाना सोच लिया तो ... पहले सब कुछ सच-सच बता दो, पानी क्या जूस बनाकर पिलाऊंगा।"
"ओके..!" जानवी एक सांस मे जल्दी-जल्दी सब बोलने लगी, "याद है आपको दो-तीन दिन पहले अक्षु मेरे घर पर आ रही थी। दुबे अंकल ने बताया उस लड़के की लाश रास्ते मे पड़ी थी। अक्षु जब भी किसी को छूती है, तो उसे उसका पास्ट दिखने लगता है। तो उस लड़के को भी अक्षु ने गलती से छु लिया था, तो उसे पता चला कि उस लड़के को किसी पिशाच ने मारा है।"
"बोल तो ऐसे रही हो जैसे वो पिशाच तुम्हारा रिश्तेदार हो ? इतने यकीन के साथ कैसे कह सकती हो कि उस लड़के को किसी पिशाच ने मारा है?" राजवीर ने उसकी बात काटकर बोला।
"मुझे पता था, कि आप हमारी बात पर विश्वास नही करोगे। लेकिन ददु, हम दोनों ने कुछ बुक्स पढ़ी और थोड़ी बहुत सर्च की थी। हो सकता है कि वह जंगल में रहने वाला पिशाच एमब्रोगियो हो या फिर राजकुमार रीवांश..... पर कुछ भी कहो दद्दू अक्षु के पास मैजिकल पावर तो है। चाहे आप मेरी बात मानो या...."
राजवीर जी ने फिर उसकी बात के बीच मे बोले, "मुझे सब पता है जानवी कि अक्षु के पास कुछ शक्तियाँ है। आज से नहीं बल्कि बचपन से, लेकिन मुझे ये नही पता था कि उसकी शक्तियाँ जागृत है।"
राजवीर के मुँह से सच सुनकर जानवी हैरान हो गयी।
उसने आँखे बड़ी करके बोला, "तो ये बात आपने पहले क्यों नहीं बताया? यह आपकी बहुत गलत बात है दद्दू ... अक्षु मेरी सिर्फ 2 महीने पुरानी फ्रेंड है। फिर भी मुझसे कुछ नहीं छुपाती है। आप अक्षु को बचपन से जानते हो.... और इतनी बड़ी बात आपने उससे छुपाई।"
"मैने सब कुछ अक्षु की भलाई के लिए ही किया था। मैं नहीं चाहता था कि वो इन पावर्स की वजह से किसी मुसीबत में आए। जानवी हमें इसके लिए वापस राजपुरोहित जी से मिलना होगा।" राजवीर जी के चेहरे पर चिंता के भाव थे।
"अब ये राजपुरोहित जी कौन हो गए? कोई न्यू एंट्री है क्या?"
राजवीर जी–"कांगड़ा में जो माता रानी का मंदिर है, वो उसी में रहते हैं। राजपुरोहित जी को ही सबसे पहले आकांक्षा की शक्तियों के बारे में पता चला था। हो सकता है इसका हल भी उन्हीं के पास हो। हमें उनके पास जाने में देर नहीं करनी चाहिए।"
"और पीछे से अक्षु घर पर आई तो?"
"अगर आकांक्षा को घर पर आना होता तो वह आ चुकी होती। वह मुझे बिना बताए कभी कहीं नहीं जाती। लगता है, वो वक्त करीब आ गया है, जिसके लिए उसका जन्म हुआ है।"
"यह तो आप भ्रम ही है कि आपको बिना बताए कहीं नहीं जाती आपकी अक्षु..!" जानवी धीरे से फुसफुसाई।
"और वो कहीं जाती भी है, तो इतनी देर में वापस भी आ जाती है। जरूर वो किसी मुसीबत में है। तुम चलोगी मेरे साथ ?" राजवीर ने पूछा, तो जानवी ने झट से हाँ मे सिर हिलाते हुए बोला,"और कोई ऑप्शन भी नहीं है।"
"ठीक है। तुम थोड़ा खाने पीने का सामान पैक कर लो। मैं तब तक कुछ और जरूरी चीजें देख लेता हूं।"
राजवीर जी के दिए निर्देशों के हिसाब से जानवी ने सब कुछ तैयार कर लिया और कोई देर बाद वो दोनो का कांगड़ा के मंदिर के लिए निकल पड़े।
★★★★
दूसरी तरफ जंगल में आकांक्षा रीवांश के साथ वहाँ से बाहर जाने का रास्ता ढूंढ़ रही थी। उन दोनों को चलते हुए काफी वक्त हो गया, लेकिन जंगल तो मानो किसी भूलभुलैया की तरह हो गया था। वो दोनो जहां से शुरु करते, घूम फिर कर वापस वही पहुंच जाते।
आकांक्षा चलते चलते बहुत थक गयी, तो एक पेड़ के नीचे बैठ गयी। रीवांश भी उसके साथ वही पास में बैठ गया।
"हम दोनो कितनी देर से चले जा रहे हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि अब तक सुबह ना हुई हो.... फिर यहां पर सूरज की रोशनी क्यों नहीं आ रही?" आकांक्षा ने हांफतें हुए पूछा।
"यहां पर सूरज की रोशनी नहीं आती।" रीवांश ने जवाब दिया।
"लेकिन क्यों ?"
"आप खुद ही देख लीजिये, यहाँ के पेड़ कितने घने हैं और इनमे से कई पेड़ सौ साल से भी पुराने हैं। इस वजह से यहां पर सूरज की रोशनी नहीं आती होगी।"
रीवांश के कहते ही आकांक्षा का ध्यान उपर की तरफ गया, जहाँ वाकई पेड़ काफी घने थे। उनमें से कुछ पेडों पर फलों को देखकर आकांक्षा ने खुश होकर कहा, "थैंक गॉड! कुछ तो खाने को मिला। वरना मेरे पेट में तो चूहे कब से हिपहॉप करे जा रहे थे? बहुत भूख लगी है।"
आकांक्षा फलों को तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ने जा ही रही थी कि रीवांश ने उसे रोकने के लिए उसका पैर पकड़कर खींचा। वो नीचे गिरने ही वाली थी, लेकिन रीवांश ने उसे अपनी बाहों मे थाम लिया। भले ही जंगल में बहुत अंधेरा था लेकिन आकांक्षा रीवांश के इतने करीब थी कि उसने पहली बार आकांक्षा को इतने करीब से देखा और महसूस किया। अचानक ऊपर से नीचे आने की वजह से आकांक्षा की आंखे डर के मारे बंद हो गई थी।
"यह क्या कर रही है आप? जानती नहीं कि जंगल के पेड़ और फल दोनों जंगली हो सकते हैं। आप उनको खाएगी, तो बीमार हो जाएंगी। आपकी जान भी जा सकती है।" रीवांश ने उसे डांटा।
आकांक्षा खुद रीवांश की बाहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी। उसने धीरे से आँखे खोली। अंधेरा होने के बावजूद उसकी नजर रीवांश की आंखों पर गई।
"तुम्हारी आंखें कितनी खूबसूरत है। मैंने कभी इतनी खूबसूरत आंखें किसी की नहीं देखी!"
"हमने भी आपसे खूबसूरत लड़की आज तक नहीं देखी। आप बिल्कुल किसी शहजादी के जैसी हैं। क्या हम आपको शहजादी बुला सकते हैं?"
आकांक्षा ने हंसते हुए जवाब दिया, "चलो कोई तो मिला शहजादी बुलाने वाला.... वरना घर के काम करते-करते नौकरानी वाली फील आने लगी थी। अब छोड़ो भी मुझे!"
आकांक्षा की बातें सुनकर रीवांश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी। वो उसे कुछ कहता, उस से पहले जंगल मे रघु, विजय, संजय और रवि के चिल्लाने का भयंकर स्वर गुंजा, जिसकी गर्जना से जंगल के पेड़ों की जड़े तक हिल गयी।
क्रमशः....!
Art&culture
04-Jan-2022 12:00 AM
काफ़ी अच्छा लिखती आप
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Arman Ansari
26-Dec-2021 05:58 PM
Kahani to bahut hi achi h
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Ali Ahmad
26-Dec-2021 04:27 PM
Very nice written
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